सिक्के
देवास स्टेट की स्थापना सन् 1726 ए. डी. में तुकोजीराव तथा जीवाजीराव द्वारा की गई जो कि पंवार वंश के थे । ये बाजीराव पेशवा की सेना के साथ मालवा के विजयी अभियान मे सेना के साथ आए थे । इन्हे अपनी सेवाओं के बदले में, देवास, सारंगपुर तथा आलोट जिले दिए गए ।
इस राज्य के सिक्कों की और विद्वानो का ध्यान सन् 1904 ए. डी. में आकर्षित हुआ । सिक्का सम्बन्धी (मुद्रा विद्या) से सम्बन्धित कुछ नई तिथि की जानकारी प्राप्त हुई इसके सिक्कों से सम्बन्धित शिक्षा के बारे में इस राज्य की नई जानकारी प्राप्त हुई ।
प्रारम्भ में राज्य के अपने सिक्के नहीं थे बल्कि, इंदौर, उज्जैन, प्रतापगढ़ और कोटा के सिक्कों का ही लेन- देन होता था, परन्तु इन्हे देने से पहले, देवास स्टेट के कुछ सुनारों को यह दायित्व दिया गया कि वे “जालाधारी” फूलों पर शिव लिगों कों, उभरे हुए फूलों के आकर की नक्काशी करें । इसी प्रकार से, आलोट तथा गढ़गुच्चा से भी चन्द्रमा के गोलाकार प्रतीक चिन्ह के तांबे के सिक्के पाए जाते थे ।
पूर्व में स्टेट में तांबे के सिक्के जिन्हे बराड़ी (बेरार नाम से जाना जाता था ) सन् 1876 (ए. डी.) में पाये गए । होली एक क़ानूनी तजवीज बनाया गया, जो सन् 1895 A.D. तक चला । कृष्णा जी राव पंवार के समय सन् 1888 A. D. में राज्य के तांबे के सिक्कों को कोलकत्ता में भी भारत सरकार, द्वारा प्रारम्भ किया गया । इससे पहले तांबे के पैसे स्थानीय स्तर पर, एक वरिष्ट शाखा द्वारा एक निशिचत समय के लिए, आलोट स्टेट में प्रारम्भ किया गया, जिसे “आलोट पैसा” कहा जाता था । चालीसवें दशक के अन्त में तथा स्वतंत्रता के तुरन्त पहले, इंदौर के भूतपूर्व शासक श्री विक्रम सिंह की अर्ध- मूर्ति (प्रतिमा) के, तांबे के सिक्के भी प्रारम्भ हुए